गुरुवार, 7 अगस्त 2008

ये क्या हो रहा है

दोस्तों एक बात कई दिनों से कहने की सोच रही थी लेकिन कोई माध्यम नही मिल रहा था आज मिला है तो जी में आया की कह दूँ सो कह रही हूँ । साथियों हम लोग जिस मुकाम पर खड़े है । वहाँ कांसेप्ट की क्लिअरिटी का सवाल मेंरे दिमाग में बार बार आता है । जब मै अपने दोस्तों में से ही कुछ लोगो को कुछ ऐसा कहता सुनती हूँ जो उन्होंने सिर्फ़ दूसरो से सुना भर है और आगे खिसका दिया है तो बड़ा अजीब लगता है मुझे समझ नही आता की वो लोग ऐसा क्यो करते है क्या वो सिर्फ़ इधर की सुनकर उधर कर सकते है क्या हमारी शिक्षा हमें इतना भी समझदार नही बना पाती की हम सुनी बातो याकि खबरों का सही मूल्यांकन कर सके ?
क्या हम भी उन लोगो में गिने जाने वालो की फेहरिस्त में नही आ रहे जो महज़ सुनकर ये जाने बिना की उनमे कितनी सच्चाई है को आगे बढ़ा देते है । क्या आप ये सही मानते है ?