बुधवार, 24 सितंबर 2008
ये ऐसे भी , ये वैसे भी
दोस्तों लगता है की टाइम के साथ-साथ लोग भी बदलते जा रहे हैं , कुछ लोग तो ऐसे हैं जो मेरे सामने मुझसे मेरे बारे में कुछ और कहेंगे और दूसरों से कुछ और । पता नही उन लोगो में इतना दिमाग कहाँ से आ जाता है की वो दूसरों के साथ इतना गेम खेल लेते हैं । चलिए कोई बात नही, पर मै उनसे सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूंगी की यारों कभी-कभी तो हमे भी कुछ बता दिया करो जिससे हमे भी तो पता चले की असल में आप हमारे बारे में क्या-क्या और कितना सोच लेते हैं ।
लाडली
दिल्ली सरकार के ''बाल एवं महिला विकास विभाग'' ने जो '' लाडली '' स्कीम निकाली है , उससे लड़कियों का (या कह सकते हैं की लड़कियों के माध्यम से उनके परिवार का ) ज्यादा न सही पर कुछ तो फायदा हो ही रहा है । भले ही माँ बाप उन्हें पैसों के लालच से स्कूल भेजे लेकिन इस बहाने कम से कम बच्चियों को शिक्षा तो मिल ही रही है लेकिन फ़िर भी अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें इस स्कीम के बारे में कुछ भी पता नही है इसलिए विभाग को चाहिए की वो इस स्कीम का प्रचार करने का और भी अधिक प्रयास करे । जिससे की ज्यादा से ज्यादा लोग इसका फायदा उठा सकें ।
शनिवार, 13 सितंबर 2008
कैसे कहें कि क्या है , कैसे कहें कहाँ है ?
कुछ बाते ऐसी होती है जिन्हें किसी से कहने का जी नही चाहता , लेकिन तब भी मैंने अपनी वो बातें अंधेरे कमरों से कही है दरअसल उस दौरान समय के उस पड़ाव में यही मेरे हमराज़ थे और यही मेरे हमनवां / बात उन दिनों जब मै जीसस एंड मेरी कॉलेज में पढ़ती थी मेरा घर पूर्वी दिल्ली में है और ये कॉलेज साऊथ दिल्ली में ,तो मेरे समय और मुझे दिल्ली कि असामाजिकता से बचाने के लिए घर वाले बेहद चिंतित थे खैर तय यह हुआ कि जब तक मेरा कॉलेज कम्प्लीट नही हो जाता मै अपनी नानी के यहाँ रहूंगी जिनका घर साऊथ कैम्पस के पास ही था यह मेरी उन अनकहे बातो का पहला संकेत है / जो लोग अपने घरो से दूर है वो जानते है कि दुनिया में सबसे बड़ा दर्द अगर कुछ है तो वो है -अपना घर होते हुए भी उससे दूर रहना ,घर से दूर रहना क्या होता है ये un लोगो से behtar koi nahi janta jo ghar se door रहते हो कारन चाहे जो भी हो / (लिखा काफी कुछ था लेकिन पोस्ट से डिलीट हो गया ........खैर बाकि आगे फ़िर कभी .................)
शुक्रवार, 12 सितंबर 2008
ये सब क्या है
कई बार सोचती हूँ तो मन में एक बात बार बार आती है की आज के नेताओं की जो छवि आज बन चुकी है ,उसका आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ता होगा आज के नेता लोग ये क्यों नही सोचते राज ठाकरे जो आजकल निति चला रहे हैं वो अंग्रेजो की फूट डालो shasan करो वाली निति ही maloom होती है
मंगलवार, 9 सितंबर 2008
ऍम. फिल एंट्रेंस 2008
इस बार हिन्दी ऍम.फिल का एंट्रेंस exam ७ सेप्टेम्बर को हुआ पेपर pichali बार से बिल्कुल ही अलग था मैंने तो सोचा था की पेपर लास्ट इयर जैसा ही आएगा तो मैंने उसी हिसाब से तयारी भी की थी लेकिन जब पेपर देखा तो मुझे lagaa की पेपर लास्ट इयर से jyada tough और mjedar भी था कई bachche तो पेपर को dekh कर या तो १ ghante के under ही bahar हो लिए or जो baki बचे थे वे पेपर से joojh कर उसे पूरा करने की कोशिश कर रहे थे mai भी unme से एक थी लेकिन चाहे कुछ भी हो पेपर vastav me achcha था इस से कम से कम ese bachche तो इस बार addmission नही ले paenge जो tukka lgate lgate ही under हो jate हैं
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