शनिवार, 13 सितंबर 2008

कैसे कहें कि क्या है , कैसे कहें कहाँ है ?

कुछ बाते ऐसी होती है जिन्हें किसी से कहने का जी नही चाहता , लेकिन तब भी मैंने अपनी वो बातें अंधेरे कमरों से कही है दरअसल उस दौरान समय के उस पड़ाव में यही मेरे हमराज़ थे और यही मेरे हमनवां / बात उन दिनों जब मै जीसस एंड मेरी कॉलेज में पढ़ती थी मेरा घर पूर्वी दिल्ली में है और ये कॉलेज साऊथ दिल्ली में ,तो मेरे समय और मुझे दिल्ली कि असामाजिकता से बचाने के लिए घर वाले बेहद चिंतित थे खैर तय यह हुआ कि जब तक मेरा कॉलेज कम्प्लीट नही हो जाता मै अपनी नानी के यहाँ रहूंगी जिनका घर साऊथ कैम्पस के पास ही था यह मेरी उन अनकहे बातो का पहला संकेत है / जो लोग अपने घरो से दूर है वो जानते है कि दुनिया में सबसे बड़ा दर्द अगर कुछ है तो वो है -अपना घर होते हुए भी उससे दूर रहना ,घर से दूर रहना क्या होता है ये un लोगो से behtar koi nahi janta jo ghar se door रहते हो कारन चाहे जो भी हो / (लिखा काफी कुछ था लेकिन पोस्ट से डिलीट हो गया ........खैर बाकि आगे फ़िर कभी .................)

3 टिप्‍पणियां:

Pradeep Kumar ने कहा…

zindagi ka naam hai chalte jaanaa . aur pori umra ham apne ghar to nahi rah sakte. haan ye theek hai ki ghar se door rahte hain to apno ki bahut yaad aati hai. magar ise ham doosre nazarye se bhi to dekh sakte hain . ghar se door rahte hain hamaare doston ka daayra badhtaa hai . naye naye log milte hain... anyway achchha likhaa hai. isko poora likhti to achchha rahtaa.

प्रतिमा ने कहा…

poora hee likha tha lekin post likhte waqt kuchh technical problem ke karan nahi poora kar paai. khair fir kabhi..........

बेनामी ने कहा…

ghar se door rahne ka dard mai samajh sakta hu, lekin ghar se door rahne par hi apno ki ahmiyat pata lagti hai, sari jimmedari apne par aa jati hai jiske poora hone par hame atmvishwas prapt hota hai.