रविवार, 16 नवंबर 2008

जनता और चुनाव

जैसे जैसे चुनाव आने लगे हैं वैसे वैसे नेताओं के तेवर भी बदलने लगे हैं जहाँ पहले वे जनता पर धयान भी नही देते थे वहीं अब हमारी बेचारी जनता पर उन्हें कुछ जरुरत से ज्यादा प्यार आने लगा है चुनाव नजदीक क्या आते हैं नेताओं के व्यवहार में एक बड़ी तबदीली देखने को मिलती है अचानक से जनता के प्रति प्रेम उभर जाता है , उनकी समस्ये दिखाई देने लगती हैं , और कुछ नही मिलता तो उनके घरो तक पहुच जाते हैं लेकिन शायद वो ये भूल जाते हैं की हम लोग इतने बेवकूफ भी नही हैं जितना की वो हमें समझते हैं इसलिए अब उन्हें या तो सावधान होकर काम करना होगा या हमे फंसाने के लि नै चाले सोचनी पड़ेंगी

मंगलवार, 11 नवंबर 2008

स्त्री शिक्षा और समस्या

लड़कियों के लिए आज के समय में शिक्षा जितनी जरुरी है उतना ही उसके लिए शिक्षा के केन्द्रों में पहुचना मुश्किल है , सुबह या तो बसे इतनी भरी हुई होती हैं की ड्राईवर बस रोकता ही नही है और अगर बस रोक भी लेता है तो उस बस में सफर इतना मुश्किल होता है की पूछिए मत , और जो बसों में कुछ अ - सामाजिक तत्वों द्वारा हरकते की जाती हैं वो अलग , एक लड़की के लिए इसे में शिक्षा प्राप्त करना सच में बहुत मुश्किल है ,डी टी सी को इस बारे में कुछ धयान देना चाहिए लेकिन वो तो अपने रोने ख़ुद ही रोने लगती है ,चलिए देखते हैं ये सिलसिला कब तक जरी रहता है ........

रविवार, 9 नवंबर 2008

हमऔर हमारी शिक्षा

आज सुबह जब बस में चढी तो बहुत भीड़ थी , बस में पैर रखने के लिए भी जगह नही थी एक लड़की जो मेरे पीछे खड़ी हुई थी उसे भी खड़े होने में कुछ तकलीफ हो रही थी उसे सुविधा देने के लिए मैंने थोड़ा साइड में खड़ा होकर उसे भी खड़े होने की जगह दे दी , लेकिन वो लड़की अपना बैलेंस नही संभाल पा रही थी और मेरे ही ऊपर गिरे जा रही थी तो मैंने उससे कहा की आप थोड़ा बैलेंस बना लो प्लीज , तब उस ने कहा अगर ज्यादा दिक्कत होती है तो अपनी गाडियों में आया करो और पतानी क्या क्या बोलने लगी मैंने उस से कहा की मै आपसे मेंनर्स से बात कर रही हूँ तो क्या आप मुझसे ठीक से बात नही कर सकती और बात में पूरे टाइम मै ये ही सोचती रही की हमारी ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा जब हम किसी से ढंग से बात भी नही कर सकते क्या हम इसीलिए पढ़ते हैं की दूसरो को उल्टा - सीधा जवाब दे

सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

सरकारी नोकर और उनका वर्चस्व

आज का दिन कुछ ख़राब रहा पहले तो बस ही देर से आई दूसरा बस ने कही और उतारने की बजाए कही और उतार दिया । लेकिन फिर भी रास्ते में हुई एक बात को देख के मुझे कुछ अजीब लगा , बात ये थी कि कुछ रिक्शा और स्कूटर वाले खड़े होकर अपनी सवारी का इंतज़ार कर रहे थे इतने में एक पुलिस अधिकारी अपने कुछ सिपाहियों के साथ वहा आया और सिपाहियों से कहा '' मार साले को ये क्या तेरा बाप लगता है जो तू इसे इतने प्यार से भगा रहा है '' ये सब बाते सुन के मुझे दुःख हुआ और लगा कि अगर इसके पास सरकारी नोकरी है भी तो क्या इसका मतलब ये है कि वो इसका गलत फायदा उठाए और लोगों को इस तरह से गलियां दे मुझे लगता है का i हमें इस बारे में सोचना चाहिए , क्या आपको नहीं लगता ................................. ???

गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

आत्महत्या और युवा

आत्म हत्या आजकल एक फैशन बनता जा रहा है , ऐसे लोग जो अपनी परेशानियों को झेल नही सकते वे बिना कुछ सोंचे -समझे इस और अपने कदम बढ़ा देते हैं । किसी समय में लोगों को इतनी परेशानियाँ झेलनी पड़ती थी पर वे उनसे घबराते नही थे पर आजकल न जाने हमारे युवाओं को क्या होता जा रहा है .......... युवा तो जोशीले और गर्म खून के नाम से जाने जाते हैं परन्तु आज कल हर अख़बार में रोज ये ही देखने और पढने को मिलता है की किसी स्कूल के छात्र ने फ़ैल होने के कारण आत्म हत्या कर ली तो किसी ने किसी के कुछ कहने से बुरा मानने के कारण अपने प्राणों को गवा दिया है ,कही किसी को उसकी प्रेमिका या प्रेमी ने प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया तो कही आर्थिक तंगी के कारण किसी ने अपनी जान देदी । अगर हमारे देश के युवा ही ऐसे करेंगे तो देश के भविष्य का क्या होगा और किसी को भी बना बनाया रास्ता तो नही मिल जाता सबको अपना रास्ता ख़ुद ही बनाना पड़ता है इसलिए हमे उनसेसे डरे बिना उनसे सिख ले कर आगे बढ़ना चाहिए न की प्रेषण होकर अपने अमूल्य जीवन को खतम करना चाहिए ।

सोमवार, 6 अक्तूबर 2008

ऍम फिल रिजल्ट

एम फिल का सारा काम खत्म हो चुका है । प्रभु की कृपा और कुछ अच्छे दोस्तों के सहयोग से मेरा नम्बर भी आ गया है , लेकिन इस पूरी परिक्रिया में बहुत कुछ देखने को मिला । बहुत से बच्चे ऐसे थे जिनका नम्बर नही आया वो सच में बहुत उदास दिखे और उन्हें देख के तो मै भी अपनी खुशी का इज़हार नही कर पाई । सच में तब मुझे ये ही लगा की आप दूसरों को दुखी देख के खुश कैसे रह सकते हैं। चलिए जो कुछ होना था हो चुका अब देखते हैं एम फिल क्या क्या होता है

बुधवार, 24 सितंबर 2008

ये ऐसे भी , ये वैसे भी

दोस्तों लगता है की टाइम के साथ-साथ लोग भी बदलते जा रहे हैं , कुछ लोग तो ऐसे हैं जो मेरे सामने मुझसे मेरे बारे में कुछ और कहेंगे और दूसरों से कुछ और । पता नही उन लोगो में इतना दिमाग कहाँ से आ जाता है की वो दूसरों के साथ इतना गेम खेल लेते हैं । चलिए कोई बात नही, पर मै उनसे सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूंगी की यारों कभी-कभी तो हमे भी कुछ बता दिया करो जिससे हमे भी तो पता चले की असल में आप हमारे बारे में क्या-क्या और कितना सोच लेते हैं ।

लाडली

दिल्ली सरकार के ''बाल एवं महिला विकास विभाग'' ने जो '' लाडली '' स्कीम निकाली है , उससे लड़कियों का (या कह सकते हैं की लड़कियों के माध्यम से उनके परिवार का ) ज्यादा न सही पर कुछ तो फायदा हो ही रहा है । भले ही माँ बाप उन्हें पैसों के लालच से स्कूल भेजे लेकिन इस बहाने कम से कम बच्चियों को शिक्षा तो मिल ही रही है लेकिन फ़िर भी अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें इस स्कीम के बारे में कुछ भी पता नही है इसलिए विभाग को चाहिए की वो इस स्कीम का प्रचार करने का और भी अधिक प्रयास करे । जिससे की ज्यादा से ज्यादा लोग इसका फायदा उठा सकें ।

शनिवार, 13 सितंबर 2008

कैसे कहें कि क्या है , कैसे कहें कहाँ है ?

कुछ बाते ऐसी होती है जिन्हें किसी से कहने का जी नही चाहता , लेकिन तब भी मैंने अपनी वो बातें अंधेरे कमरों से कही है दरअसल उस दौरान समय के उस पड़ाव में यही मेरे हमराज़ थे और यही मेरे हमनवां / बात उन दिनों जब मै जीसस एंड मेरी कॉलेज में पढ़ती थी मेरा घर पूर्वी दिल्ली में है और ये कॉलेज साऊथ दिल्ली में ,तो मेरे समय और मुझे दिल्ली कि असामाजिकता से बचाने के लिए घर वाले बेहद चिंतित थे खैर तय यह हुआ कि जब तक मेरा कॉलेज कम्प्लीट नही हो जाता मै अपनी नानी के यहाँ रहूंगी जिनका घर साऊथ कैम्पस के पास ही था यह मेरी उन अनकहे बातो का पहला संकेत है / जो लोग अपने घरो से दूर है वो जानते है कि दुनिया में सबसे बड़ा दर्द अगर कुछ है तो वो है -अपना घर होते हुए भी उससे दूर रहना ,घर से दूर रहना क्या होता है ये un लोगो से behtar koi nahi janta jo ghar se door रहते हो कारन चाहे जो भी हो / (लिखा काफी कुछ था लेकिन पोस्ट से डिलीट हो गया ........खैर बाकि आगे फ़िर कभी .................)

शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

ये सब क्या है

कई बार सोचती हूँ तो मन में एक बात बार बार आती है की आज के नेताओं की जो छवि आज बन चुकी है ,उसका आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ता होगा आज के नेता लोग ये क्यों नही सोचते राज ठाकरे जो आजकल निति चला रहे हैं वो अंग्रेजो की फूट डालो shasan करो वाली निति ही maloom होती है

मंगलवार, 9 सितंबर 2008

ऍम. फिल एंट्रेंस 2008

इस बार हिन्दी ऍम.फिल का एंट्रेंस exam ७ सेप्टेम्बर को हुआ पेपर pichali बार से बिल्कुल ही अलग था मैंने तो सोचा था की पेपर लास्ट इयर जैसा ही आएगा तो मैंने उसी हिसाब से तयारी भी की थी लेकिन जब पेपर देखा तो मुझे lagaa की पेपर लास्ट इयर से jyada tough और mjedar भी था कई bachche तो पेपर को dekh कर या तो १ ghante के under ही bahar हो लिए or जो baki बचे थे वे पेपर से joojh कर उसे पूरा करने की कोशिश कर रहे थे mai भी unme से एक थी लेकिन चाहे कुछ भी हो पेपर vastav me achcha था इस से कम से कम ese bachche तो इस बार addmission नही ले paenge जो tukka lgate lgate ही under हो jate हैं

गुरुवार, 7 अगस्त 2008

ये क्या हो रहा है

दोस्तों एक बात कई दिनों से कहने की सोच रही थी लेकिन कोई माध्यम नही मिल रहा था आज मिला है तो जी में आया की कह दूँ सो कह रही हूँ । साथियों हम लोग जिस मुकाम पर खड़े है । वहाँ कांसेप्ट की क्लिअरिटी का सवाल मेंरे दिमाग में बार बार आता है । जब मै अपने दोस्तों में से ही कुछ लोगो को कुछ ऐसा कहता सुनती हूँ जो उन्होंने सिर्फ़ दूसरो से सुना भर है और आगे खिसका दिया है तो बड़ा अजीब लगता है मुझे समझ नही आता की वो लोग ऐसा क्यो करते है क्या वो सिर्फ़ इधर की सुनकर उधर कर सकते है क्या हमारी शिक्षा हमें इतना भी समझदार नही बना पाती की हम सुनी बातो याकि खबरों का सही मूल्यांकन कर सके ?
क्या हम भी उन लोगो में गिने जाने वालो की फेहरिस्त में नही आ रहे जो महज़ सुनकर ये जाने बिना की उनमे कितनी सच्चाई है को आगे बढ़ा देते है । क्या आप ये सही मानते है ?