शनिवार, 5 दिसंबर 2009

भाषा और संस्कृति

हमारी संस्कृति का असर हमारी भाषा ( यहाँ भाषा का मतलब सिर्फ़ मुँह से निकलने वाले शब्द ही नही है बल्कि अपनी बातों को दूसरे तक पहुँचाने वाले वे सभी साधन है जिससे हम अपनी बात {सम्प्रेषण } दूसरों तक पंहुचा सकते हैं ) पर भी पड़ता हैl जिस तरह की संस्कृति होगी भाषा भी उसी के अनुसार बदलती रहती हैl दो अलग -अलग देशों की संस्कृति भी अलग -अलग ही होती है (हो सकता है की कुछ बातें मिलती भी हो पर सिर्फ़ कुछ ..........) उस अलग संस्कृति से हमारी भाषा भी प्रभावित होती हैl उदाहरण के लिए पश्चिम के देशों की संस्कृति खुले विचारों वाली है इसलिए वहाँ के संस्कारों के अनुसार ही लोग hello , hi आदि बोलते है, वहाँ दूसरों को गले लगाया जाता हैl ऐसा वे केवल अपने से छोटों के साथ नही करते बल्कि चाहे बड़े हो या छोटे वे दोनों के लिए ही ऐसा प्रयोग करते हैं जबकि हमारे यहाँ बड़ो को नमस्ते या प्रणाम किया जाता है उनके पैर छूए जाते हैं (ये बात अलग है की अब हम भी धीरे -धीरे hi, hello करने लगे हैं ) इसी प्रकार जिस तरह की संस्कृति होगी उसी तरह के शब्द भी हमारे daily के use में आते हैं जैसे हमारे यहाँ सिन्दूर, पगड़ी , स्वास्तिक चिन्ह ,शेरवानी ,साड़ी , अर्ध्य , लंगोटी , धोती , चूड़ा , मिठाईयों के नाम जैसे गुलाबजामुन ,चमचम , रसगुल्ला आदि ,चुटकी या बिछ्वे , मंगलसूत्र , जैसे अनेक शब्द हैं जो हमारे यहाँ मिलते हैं जबकि उनके यहाँ इस तरह के शब्द नही पाए जाते और देखे तो हमारे यहाँ परिवार ,संबंधों का शुरू से ही बड़ा महत्व रहा है यही कारण है की हमारे यहाँ हर एक रिश्ते का एक अलग ही नाम है जैसे चाचा ,मौसा ,फूफा , ताऊ , जबकि वहाँ सभी के लिए सिर्फ़ uncle और चाची ,ताई , मौसी , बुआ के लिए वहाँ aunty का प्रयोग किया जाता है हमारे यहाँ बड़ों के पैर छुए जाते है, जबकि वहाँ हाथ मिलाया जाता है, गले लगाया जाता है kissing की जाती हैl इस प्रकार हमारी संस्कृति हमारी भाषा पर भी प्रभाव डालती है